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Lyrics of Kahin Door Jab Din Dhal Jaye - कही दूर जब दिन ढल जाये
kahi dur jab din dhal jaye
saanjh ki dulhan badan churaye, chupake se aaye
mere khayalo ke aangan me
koi sapno ke dip jalaye, dip jalaye
kahi dur jab din dhal jaye
saanjh ki dulhan badan churaye, chupake se aaye
kabhi yuhi, jab hui, bojhal saanse
bhar aai baithe baithe, jab yuhi aankhe
tabhi machal ke, pyaar se chhalke
chhuye koi mujhe par nazar na aaye, nazar na aaye
kahi dur jab din dhal jaye
saanjh ki dulhan badan churaye, chupake se aaye
kahi to ye, dil kabhi, mil nahi paate
kahi pe nikal aaye, janmo ke naate
thani si ulajhan, bairi apana man
apna hi hoke sahe dard paraye, dard paraye
kahi dur jab din dhal jaye
saanjh ki dulhan badan churaye, chupake se aaye
mere khayalo ke aangan me
koi sapno ke dip jalaye, dip jalaye
kahi dur jab din dhal jaye
saanjh ki dulhan badan churaye, chupake se aaye
Comments for lyrics of song "Kahin Door Jab Din Dhal Jaye"
Pankaj Patel on Monday, April 14, 2014 कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन, बदन चुराए, चुपके से आए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन, बदन चुराए, चुपके से आए
मेरे ख़यालों के आँगन में कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन, बदन चुराए, चुपके से आए
कभी यूँही जब हुईं बोझल सांसें, भर आईं बैठे बैठे जब यूँहीं आँखें
कभी यूँही जब हुईं बोझल सांसें, भर आईं बैठे बैठे जब यूँहीं आँखें
कभी मचल के प्यार से चल के, छुए कोई मुझे पर नज़र न आए, नज़र न आए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन, बदन चुराए, चुपके से आए
मेरे ख़यालों के आँगन में कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन, बदन चुराए, चुपके से आए
कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते, कहीं से निकल आयें जन्मों के नाते,
कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते, कहीं से निकल आयें जन्मों के नाते
धनि थी उलझन वैरी अपना मन, अपना ही होके सहे दर्द पराये दर्द पराये
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए
मेरे ख़यालों के आँगन में कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए
दिल जाने मेरे सारे भेद ये गहरे हो गए कैसे मेरे सपने सुन्हेरे
दिल जाने मेरे सारे भेद ये गहरे हो गए कैसे मेरे सपने सुन्हेरे
ये मेरे सपने यही तो हैं अपने मुझसे से जुदा न होंगे इनके ये साए इनके ये साए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए सांझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए
मेरे ख़यालों के आँगन में कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन बदन चुराए, चुपके से आए
shahid mahmood on Friday, September 12, 2014 कहीं दूर जब दिन ढल जाए .. کہیں دور جب دن ڈھل جائے
साँझ की दुल्हन बदन चुराए .. سانجھ کی دلہن بدن چرائے
चुपके से आए .. چپکے سے آئے
मेरे ख़यालों के आँगन में .. میرے خيالوں کے آنگن میں
कोई सपनों के दीप जलाए, दीप जलाए .. کوئی سپنوں کے دیپ جلائے، دیپ جلائے
कहीं दूर ... .. کہیں دور ...
..
कभी यूँहीं, जब हुईं, बोझल साँसें .. کبھی يونہي، جب ہوئیں، بوجھل سانسیں
भर आई बैठे बैठे, जब यूँ ही आँखें .. بھر آئیں بیٹھے بیٹھے، جب یوں ہی آنکھیں
तभी मचल के, प्यार से चल के .. تبھی مچل کے، پیار سے چل کے
छुए कोई मुझे पर नज़र न आए, नज़र न आए .. چھوئے کوئی مجھے پر نظر نہ آئے، نظر نہ
آئے
कहीं दूर ... .. کہیں دور ...
..
कहीं तो ये, दिल कभी, मिल नहीं पाते .. کہیں تو یہ، دل کبھی، مل نہیں پاتے
कहीं से निकल आए, जनमों के नाते .. کہیں سے نکل آئیں، جنموں کے ناطے
घनी थी उलझन, बैरी अपना मन .. گھنی تھی الجھن، بیری اپنا من
अपना ही होके सहे दर्द पराये, दर्द पराये .. اپنا ہی ہوکے سہے درد پرائے، درد
پرائے
कहीं दूर ... .. کہیں دور ...
..
दिल जाने, मेरे सारे, भेद ये गहरे .. دل جانے، میرے سارے، بھید یہ گہرے
खो गए कैसे मेरे, सपने सुनहरे .. کھو گئے کیسے میرے سپنے سنہرے
ये मेरे सपने, यही तो हैं अपने .. یہ میرے سپنے یہی تو ہیں اپنے
मुझसे जुदा न होंगे इनके ये साये, इनके ये साये .. مجھ سے جدا نہ ہوں گے ان کے
یہ سائے، ان کے یہ سائے
कहीं दूर ... .. کہیں دور ...
Shafi Newaz on Saturday, April 04, 2015 আমায় প্রশ্ন করে নীল ধ্রুবতারা
আর কত কাল আমি রবো দিশাহারা,
রবো দিশাহারা
জবাব কিছুই তার দিতে পারি নাই শুধু
পথ খুঁজে কেটে গেল এ জীবনো সাড়া,
এ জীবনো সাড়া
আমায় প্রশ্ন করে নীল ধ্রুবতারা
আর কত কাল আমি রবো দিশাহারা,
রবো দিশাহারা
কারা যেনো, ভালবেসে আলো জ্বেলেছিল,
সূর্যের আলো তাই নিভে গিয়েছিল
কারা যেনো, ভালবেসে আলো জ্বেলেছিল,
সূর্যের আলো তাই নিভে গিয়েছিল
নিজের ছায়ার পিছে,
ঘুরে ঘুরে মরি মিছে
একদিন চেয়ে দেখি,
আমি তুমি হারা, আমি তুমি হারা
আমায় প্রশ্ন করে নীল ধ্রুবতারা
আর কত কাল আমি রবো দিশাহারা,
রবো দিশাহারা
আমি পথ খুঁজি নাতো, পথ মোরে খোঁজে
মনো যা বোঝে না বুঝে, না বুঝে তা বোঝে
আমি পথ খুঁজি নাতো, পথ মোরে খোঁজে
মনো যা বোঝে না বুঝে, না বুঝে তা বোঝে
আমার চতুরপাশে সব কিছু যায় আসে
আমি শুধু তুষারিত গতিহীনো ধারা
গতিহীনো ধারা
আমায় প্রশ্ন করে নীল ধ্রুবতারা
আর কত কাল আমি রবো দিশাহারা,
রবো দিশাহারা
জবাব কিছুই তার দিতে পারি নাই শুধু
পথ খুঁজে কেটে গেল এ জীবনো সাড়া,
এ জীবনো সাড়া
আমায় প্রশ্ন করে নীল ধ্রুবতারা
আর কত কাল আমি রবো দিশাহারা,
রবো দিশাহারা
Ravish Vaidya on Wednesday, July 18, 2012 “बाबुमुशाई... ज़िंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहाँपनाह, उसे न तो आप
बदल सकते हैं न मैं, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं जिनकी डोर ऊपर वाले की
उंगलियों में बंधी है, कब, कौन, कैसे उठेगा यह कोई नहीं बता सकता है..” we all
miss you kaka..
sprang12 on Wednesday, March 06, 2013 Somewhere far away when the day retires The dusk sneaks up, shyly like a
bride In the courtyard of my thoughts, Someone lights up lamps of dreams
Sometimes when without a reason my breaths become heavy When my eyes well
up just sitting there Then with a flutter, moving with love, Someone
touches me, but I cannot see her.. I cannot see her Sometimes these hearts
are unable to come together and somewhere else, connections of lifetimes
emerge.. The problem was deep, and my own heart became the...